Surdas Ka Jivan Parichay | सूरदास का जीवन परिचय
पिछली पोस्ट में हमने Tulsidas ka jivan parichay|तुलसीदास जी का जीवन परिचय जाना इस पोस्ट में हम Surdas Ka Jivan Parichay | सूरदास का जीवन परिचय जानेंगे। हिंदी साहित्य के महान कवि संत सूरदास जी का भक्ति धारा के प्रमुख कवि रहे है उन्होंने भगवान श्रीकृष्ण को अपना आराध्य मानकर अपनी रचना लिखी।सूरदास जी का जन्म 1478ई मे सीही नमक स्थान पर हुआ था।उनके पिता का नाम रामदास था एवं माता का नाम जमुनादास था.सूरदास जन्मदिन से अंधे थे उनका बचपन से श्रीकृष्णकी भक्ति मे विश्वास था इसलिए उन्होंने अपनी रचना उनके प्रति लिखी।
सूरदास नदी किनारे बैठ कर ही पद लिखते और उसका गायन करते थे और कृष्ण भक्ति के बारे में लोगों को बताते थे।सूरदास ने अपने जीवन काल में “सूरसागर, सूर-सारावली, साहित्य लहरी” प्रमुख रचनाएँ की हैं।उनकी रचना कर कारण उन्हें हिन्दी साहित्य में सूरदास को सूर्य की उपाधि दी गयी है। कहा जाता था की सूरदास जन्म से ही अंधे थे। सूरदास जी अकबर के समकालीन कवि थे।
नाम – सूरदास
जन्म मृत्यु – 1478 से 1583
जन्म स्थान – सीही
गुरूजी – बल्लभाचार्य
पिता – रामदास
भाषा – ब्रज
रस – बत्सल
रचना – सूरसागर, सूरसरावाली, साहित्य लहरी
सूरदास का जीवन परिचय – शिक्षा
सूरदास जी के गुरूजी का नाम महाप्रभु बल्लभाचार्य था उनकी योग्यता देखकर उन्हें अपना शिष्य बनाया लिया था।बल्लभाचार्य के पुत्र बिट्ठलनाथ ने ‘अष्टछाप’ नाम से कृष्णभक्त कवियों का एक समूह बनाया जिसमे यह सबसे श्रेष्ठ कवि हुआ करते थे। सूरदास जी की मृत्यु 1583 मे परसोली नामक स्थान पर हुई थी।
सूरदास ने सूरसागर, सूरसरावाली, साहित्य लहरी नमक ग्रन्थ की रचना की थी। सूरदास जी को हिंदी सहित्या मे सूर्य के नाम से उपाधि दी गयी है।
साहित्यिक परिचय (Sahityik Parichay) –
सूरदास जी महान कवि थे उन्होंने श्री कृष्ण को अपना आराध मानकर अपनी रचना की सूरदास जी अपनी रचना मे ब्रज भाषा का प्रयोग किया है। उन्होंने कुल 25 ग्रन्थ लिखें लेकिन केवल तीन ग्रन्थ ही मिलते है। उन्होंने वत्सल रस का बड़ा ही रोचक वर्णन किया है इसलिए उन्हें वात्सल्य रस का सम्राट कहा जाता है। उन्होंने अपनी रचना मे दोहा सोरठा एवं अलंकार का भी प्रयोग किया है।
कृतियां और रचनाएं (Rachnaen) –
सूरदास जी भक्ति धारा के कृष्ण पक्ष की रचना लिखी है सूरदास जी अपनी रचना मे श्रीकृष्णा की महिमा का बखान किया है। उन्होंने अपनी रचना मे ब्रज भाषा का प्रयोग किया है। एवं वत्सल्य रस की प्रधनाता रही है। उनके प्रमुख ग्रन्थ सूरसागर, सूरसरावाली, साहित्य लहरी है।
1. सूरसागर- सूरदास जी की सबसे प्रसिद्ध रचना यही है।यह सूरदास जी की एकमात्र कृति है। यह एक गीतिकाव्य है, जो ‘श्रीमद् भागवत’ ग्रंथ से प्रभावित है। इसमें उन्होंने त्याग मिलन का वर्णन किया है।
2. सूरसारावली – यह ग्रंथ सूरसागर का सारभाग है, जो अभी तक मतभेद स्थिति में है, किंतु यह भी सूरदास जी की एक कृति है। इसमें 1107 पद हैं।
3. साहित्यलहरी -इसे भी सूरदास या उनके शिस्यो ने लिखा है इस ग्रंथ में 118 दृष्टकूट पदों का संग्रह है तथा इसमें मुख्य रूप से नायिकाओं एवं अलंकारों की विवेचना की गई है।
भाषा-शैली (Bhasha Shaili) –
सूरदास जी ने अपने पदों में प्रमुख रूप से ब्रज भाषा का प्रयोग किया है तथा इनके सभी पद गीतात्मक हैं, जिस कारण इनमें माधुर्य गुण की प्रधानता है। इन्होंने अत्यंत सरल एवं प्रभावपूर्ण शैली का प्रयोग किया है। उनका काव्य मुक्तक शैली पर आधारित है। व्यंग वक्रता और वाग्विदग्धता सूर की भाषा की प्रमुख विशेषताएं हैं। कथा वर्णन में वर्णनात्मक शैली का प्रयोग किया है। दृष्टकूट पदों में कुछ किलष्टता अवश्य आ गई है।
हिंदी साहित्य स्थान (Hindi sahitya mein sthan) –
सूरदास जी हिंदी साहित्य के महान् काव्यात्मक प्रतिभासंपन्न कवि थे। इन्होंने श्रीकृष्ण की बाल-लीलाओं और प्रेम-लीलाओं का जो मनोरम चित्रण किया है, वह साहित्य में अद्वितीय है। हिंदी साहित्य में वात्सल्य रस का एकमात्र कवि या प्रमुख कवि सूरदास जी को ही माना जाता है, साथ ही इन्होंने मिलन एवं त्याग का भी अपनी रचनाओं में बड़ा ही मनोरम चित्रण किया है.
सूरदास जी का वैवाहिक जीवन
सूरदास जी का विवाह रत्नावली के साथ हुआ था कहा जाता है की इकी कोई संतान नहीं थी सूरदास जी का विवाहिक जीवन काफ़ी चर्चा का विषय रहा है कुछ लोग इसे मानने से एंकर करते है।
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